लेखनी कविता -16-Aug-2024
शीर्षक - तन्हा
तन्हा और तन्हाई के साथ रहते हैं। सच और झूठ फरेब हम रखते हैं। तन्हा हम सभी अपने को कहते हैं। अकेले जीना और मरना तन्हा होते हैं। हम सभी अपने जीवन में तन्हा क्यूं हैं। हां जिद गरूर और कुदरत के रंग हैं। तन्हा और हम बस धन और सूरत हैं। मन की सोच और आकर्षण होता हैं। चलो तन्हा जीने की राह खोजते हैं। न मिले तुम तन्हा ही हम जीते हैं। बस सफर हमसफर न मिलते हैं। न विश्वास और न सच कहते हैं। बस धन संपत्ति और लालच होते हैं। तन्हा और तन्हाई का सच रहते हैं।
नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र
Arti khamborkar
21-Sep-2024 09:08 AM
v nice
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